यारो क्यों जान अपनी, लुटाने पे तुले हो
क्यों अपने साथ सबको, मिटाने पे तुले हो

तुम खूब जानते हो करोना की विभीषिका,
फिर क्यों इसकी आफतें, बढ़ाने पे तुले हो

न खेलो खेल ऐसा कि बन आये जान पर,
क्यों कुकर्मों से वतन को, डुबाने पे तुले हो

धर लो बात शासन की अपने भी दिल में,
यारा इसके क्यों तार आगे, बढ़ाने पे तुले हो

सज़ाए मौत से अच्छी है कुछ दिन की क़ैद,
यारो क्यों ज़िंदगी का दाव, लगाने पे तुले हो

मत लगाओ पलीता शासन की कोशिशों को,
क्यों अपनों को चोट गहरी, लगाने पे तुले हो

रुक जाओ वहीँ पर जहाँ रुके थे अब तलक,
क्यों पलायन कर मुश्किलें, बढ़ाने पे तुले हो

गर हौसला है तो दुश्मन से अकेले ही लड़िये,
क्यों कफ़न अपने प्यारों को, उड़ाने पे तुले हो

कुदरत के सामने सब के सब लाचार हैं "मिश्र",
आखिर तुम क्यों उससे पंजा, लड़ाने पे तुले हो

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