कोई तो मेरी चाहतों को, ज़रूर समझेगा
कोई तो मेरी आदतों को, ज़रूर समझेगा
न निभा पाया मैं ये दुनिया के नाते रिश्ते,
कोई तो मेरी आफ़तों को, ज़रूर समझेगा

मिलते रहे हैं हर कदम पर धोखे ही धोखे,
कोई तो दिली आहटों को, ज़रूर समझेगा
जीने का इरादा तो कर दिया मुल्तवी मैंने,
कोई तो मेरी हसरतों को, ज़रूर समझेगा

यारो नहीं है ये दुनिया किसी की भी सगी,
कोई तो मेरी शराफ़तों को, ज़रूर समझेगा
उलझते रहे हैं 'मिश्र' तो फरेबों के जाल में,
कोई तो गहरी साजिशों को, ज़रूर समझेगा...

Leave a Comment