कितने मतलबी हैं हम, कि अपना ही घर देखते हैं !
गर जलता है घर किसी का, तो अपने हाथ सेकते हैं !
कितने छलों प्रपंचों से भरे हैं इस दुनिया के लोग,
कि #खून के रिश्तों में भी, परायों सा अक्स देखते हैं !
हम हैं कि क्या क्या सोचते हैं गलत औरों के फेर में,
अफसोस कि खुद को भी, औरों की नज़र से देखते हैं !
गीता का ज्ञान भी उल्टा हो गया है आजकल दोस्तो,
लोगों के शरीर ज़िंदा हैं मगर, #आत्मा मरी देखते हैं !
मिट गए न जाने कितने #ख़ुदा की तलाश में,
मगर अब तो हर तरफ हम, ख़ुदा ही ख़ुदा देखते हैं !