किस को हकीकत कहें, किस को वहम समझें
किस को कमतर कहें, किस को अहम समझें
दिखते हैं दूर से तो सब अपने से लेकिन, इसे
नज़रों का वहम कहें, या ख़ुदा का रहम समझें
एक से एक बढ़ कर हैं शातिर इस दुनिया में,
खुदाया किसको ज्यादा कहें, किसको कम समझें
रिश्तों पे चढ़ा रखा है दिखावे का पानी "मिश्र",
अब किसको हमदर्द कहें, किसको बेरहम समझें

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