फिर किसी की याद ने रात भर जगाया हमको
मोहब्बत की तपिश ने बे मौत जलाया हमको
न दिन को करार मिला न रात को सुकून
आखिर क्या गर्ज़ थी खुदा को जो बनाया हमको
चिराग बनकर हम जलाते रहे उल्फ़त की शमा
पर नफरत की आंधियों ने हमेशा डराया हमको
बे-वफाओं से भला क्या करते वफा की उम्मीद
हमेशा उनके दिये जख़्मों ने गले लगाया हमको...

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