हम औरों की चाह में, ख़ुद को भुला बैठे !
इन झूठों के फरेब में, सच को भुला बैठे !
इस कदर खोये इस मतलबी दुनिया में,
कि हड़पने की हवस में, हद को भुला बैठे !
हम छोड़ आये पीछे न जाने कितनी यादें,
यारो आज की धमक में, कल को भुला बैठे !
दौलत को बना रखा है अब तो ख़ुदा सबने,
यारो वैभव की चमक में, रब को भुला बैठे !
समेंट डाली ज़िंदगी सिर्फ अपने तक "मिश्र",
अब तो शान के गुमान में, सब को भुला बैठे !