समय के साथ, खुद भी तो बदलना सीखो,
दुनिया के ढांचे में, खुद भी तो ढलना सीखो !
हर कदम पे मिलते हैं अजब किरदार अब,
वो कोंन कैसा है, खुद भी तो परखना सीखो !
करता है फ़ना खुद को वो औरों की खातिर,
तुम दीये की तरह, खुद भी तो जलना सीखो !
मिटा देती है हस्ती वो हमारी जीभ की खातिर,
कभी चीनी की तरह, खुद भी तो घुलना सीखो !
बरसता है बादल जमीं की ज़रुरत समझ कर,
औरों की ज़रूरतें, खुद भी तो समझना सीखो !
हर पत्थर समझता है कि इमारत उसी से है,
ऐसी ग़लतफ़हमी से, खुद भी तो बचना सीखो !
क्यों देखते हो हर किसी में सिर्फ कमियां ,
खुद में ख़ास क्या है, खुद भी तो मथना सीखो !