चाहत की इस दुनिया में, केवल व्यापार मिले मुझको
चाहा जिसे फूलों की तरह, उससे ही खार मिले मुझको
कैसे जीया हूँ कैसे मरा हूँ, किसी को कोई गरज नहीं,
दिल में घुस के घात करें, कुछ ऐसे यार मिले मुझको
अपना पराया करते करते, ये जीवन ही सारा गुज़र गया,
ना रही खनक अब रिश्तों में, झूठे इक़रार मिले मुझको
जिसके साथ हँसे खेले, जीवन भर जिसको प्यार किया,
उसने ही कपट की चाल चली, ऐसे किरदार मिले मुझको
यहाँ कौन है अपना कौन पराया, कैसे समझूँ इनको मैं,
ना मिली शराफत ढूंढें से, केवल मक्कार मिले मुझको !!!