रंगा है उनका खंज़र भी, मेरे ही खून से !
कर गए वो क़त्ल मेरा, बड़े ही सुकून से !
नहीं था पता कि क़ातिलों की गली है ये,
हार बैठा सब कुछ मैं. अपने ही जूनून से !
न रहे वो दोस्त न रहा वो अपनापन ही,
अब लगता है डर हमें, अपने ही खून से !
इंसानियत कैद है सिर्फ किताबों में दोस्त,
कुछ न होगा अब, उसमें लिखे मज़मून से !

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