दौर ए गर्दिश का असर, कब तक रहेगा
यूं ही उलझनों का सफर, कब तक रहेगा
कभी तो टूटेगा आदमी का हौसला यारो,
न जाने आफतों का कहर, कब तक रहेगा,
ज़िंदगी लगा दी हमने ज़िंदगी की खोज में,
आखिर मरने जीने का डर, कब तक रहेगा
जिसने मुद्दतें गुज़ार दीं हवाओं से झगड़ते,
आखिए वो बूढा सा शज़र, कब तक रहेगा
भटकता है दिल रौशनी की चाह में हरदम,
आखिर इन अंधेरों का डर, कब तक रहेगा
भुला दी है सब ने "मिश्र" मोहब्बत की भाषा,
आखिर ये नफरतों का ज़हर, कब तक रहेगा
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