कांटे मुझे मिलते रहे, हमेशा ही यार की तरह
चुभन से मिलता रहा, दर्द भी प्यार की तरह
फूलों ने मुंह मोड लिया न जाने क्या सोचा,
मैने भी उन्हें भुला दिया, भूले करार की तरह
अफसोस कि उन्हें गम नहीं अपनी ज़फा का,
पर हमतो यूं ही लुट गए, उजडे बज़ार की तरह
मंझधार में अकेला छोड कर चले गये वो अपने,
और हम समझ बैठे उन्हें, इक पतवार की तरह
दुश्मनों ने निभाई दुश्मनी बड़ी ही शिद्दत से,
पर अपनों ने आंखे फेर लीं, गुनहगार की तरह..
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