कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...
बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में

कांपते होठों से मैंने पुछा,
"क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"
दूकानदार बोला: "कौन सा लोगे..?

बेटे का ..या बाप का..?
बहिन का..या भाई का..?
बोलो कौन सा चाहिए..?
इंसानियत का या प्रेम का..?

माँ का..या विश्वास का..?
बाबू जी कुछ तो बोलो कौन सा चाहिए.
चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...

मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?

दुकानदार नम आँखों से बोला:
"संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है ..,
माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे,

और जिस दिन ये बिक जायेगा...
उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा......

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