मैं अधूरी हसरतों का हिसाब क्या दूँ ,
उमड़ती फ़ितरतों का हिसाब क्या दूँ !
न देखो मेरे चेहरे की ज़र्द रंगत कोई ,
मैं बिगड़ी किस्मतों का हिसाब क्या दूँ !
कैसे कटी है ज़िन्दगी दहशतों में मेरी,
दुनिया की नफरतों का हिसाब क्या दूँ !
न रखा कभी वास्ता उन मेरे अपनों ने,
मैं गैरों की रहमतों का हिसाब क्या दूँ !
दौड़ा किया मैं उम्र भर जीने की खातिर,
यारो अपनी मेहनतों का हिसाब क्या दूँ !
मैं ढोया हूँ अकेले ही ज़िन्दगी को "मिश्र",
भला अपनी ख़ल्वतों का हिसाब क्या दूँ !!!