आज तो दिल में, यादों का चमन सजा बैठा है,
अतीत का हर लम्हा, काबिले याद बना बैठा है !
वक़्त था कि रोज़ मिलते थे अपने यारों से हम,
अब तो कोई कहीं, तो कोई कहीं जमा बैठा है !
आये थे इस शहर में जोशो जवानी लेकर हम,
मगर अब कोई नाना, तो कोई दादा बना बैठा है !
आये थे आशाओं से भरा निश्छल दिल लेकर,
अब कोई अहम्, तो कोई वहम का मारा बैठा है !
हमने भी देखे थे कभी नज़ारे खुली आँखों से,
अब तो उन पर, ये बुढापे का चश्मा चढ़ा बैठा है !
क्या इसी को कहते हैं #ज़िंदगी जीना दोस्त कि,
जो था सहारा औरों का, अब लाचार बना बैठा है !
न पहचान पाओगे अपनों को भी अब,
अब हर कोई, अपने चेहरे पर मुखौटा लगा बैठा है !!!