क्या बिगड़ जाता तेरा, गर झुक के रहा होता
दिल को न छूती बात, गर हंस के कहा होता
#दोस्त तेरी बनी बात ऐसे न बिगड़ती अगर,
तू यूं ही झूठी शान में, न अकड के रहा होता
गर न बुनता जाल तू अपनी फितरतों का,
तो आज खुद ही उसमें, न जकड के फंसा होता...