देख लिया गैरों को, हमने अपना बना के
लूट लिया हम को, हसीन सपना दिखा के
किस कदर रोता है दिल उनकी बेरुखी पे,
जब गुज़र जाते हैं वो, सर अपना झुका के
अब गिनते हैं तारे यूं ही रातों को जाग कर,
पाया क्या हमने, यूं ही दिल अपना जला के
उनकी ग़लतफ़हमी का ज़रा आलम तो देखो,
खुश हैं कितने, किसी ओर को अपना बना के
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