मैं फूलों की दास्ताँ, काँटों की जुबानी लिखता हूँ
ख़िज़ाँ की जुबाँ से, गुलशन की कहानी लिखता हूँ
तितलियों के मन में क्या है, भला हमको क्या पता
मैं तो थिरकनें उनकी, रंगों की जुबानी लिखता हूँ
डालियों में है कितना दम, ये तो दरख़्त जानता है
मैं पत्तों का छटपटाना, हवा की जुबानी लिखता हूँ
भले ही खुशबुओं से तर है, उपवन का हर कोना,
मैं परागों की कहानी, भोंरों की जुबानी लिखता हूँ
है बागों की बहारों से, मेरा पुराना सा रिश्ता यारो
मैं कोकिल की कूँज से, बागों की रवानी लिखता हूँ
होंगे बहुत खुश, पखेरुओं को बसेरा दे कर विटप
मैं तो खगों की दास्ताँ, नीड़ों की जुबानी लिखता हूँ
"मिश्र" होता है बहुत खुश, चमन को देख के बागवां,
मैं उसका खाद पानी, फ़िज़ाँ की जुबानी लिखता हूँ