साजिशों की दुनिया में, सिर्फ चेहरे बदलते हैं!
हम जिधर भी जाते हैं, दुश्मन साथ चलते हैं!
क्यों करते हैं भरोसा हम अपनों पर इतना,
वक़्त पड़ने पे अक्सर, यही ईमान बदलते हैं!
देकर वफ़ा की दुहाई घुस तो आते हैं दिल में,
मगर यही ज़िन्दगी में फिर, ज़हर उगलते है!
ये शातिरों की बस्ती है ज़रा संभल के रहिये,
यहां तो पल पल शातिरों के, अंदाज़ बदलते हैं!