मौत के बाद का, मेरा तज़ुर्बा बड़ा अजीब था
दुश्मन भी कह रहा था, मेरा बड़ा अज़ीज़ था
ज़िंदगी थी तो अपने पराये का झमेला था,
मगर मौत पर मेरी, हर कोई खड़ा क़रीब था
हर अदमी के चेहरे पर देखी मैंने मायूसी,
फिर चाहे बड़ा अमीर था, चाहे बड़ा गरीब था
जब ज़िंदगी थी तो क्या कमीं थी मुझमें,
बस सोचता हूँ ये कि, मेरा ही सड़ा नसीब था...

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