हमें तो दिल लगाने के, अब लायक न छोड़ा,
दिल को और ग़म उठाने के, लायक न छोड़ा !
कुछ इस क़दर ज़ुल्म ढाये हैं अय ज़िंदगी तूने,
कि हमें तो मुस्कराने के, अब लायक न छोड़ा !
कभी बहुत रसूक था अपना भी जमाने में मगर,
बद वक़्त ने नज़र मिलाने के, लायक न छोड़ा !
अब तो आती है हंसी हमें अपने झूठे गुरूर पर,
ख़ुदाया ख़ुद को ही जमाने के, लायक न छोड़ा !
फ़ितरतों ने ऐसा खिलाया गुल अपनों के साथ,
कि हमें फिर से दिल मिलाने के, लायक न छोड़ा !
 

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