दुनिया के सारे ग़म को, दिल में समां लिया मैंने
एक फूल से दिल को भी, पत्थर बना लिया मैंने
ये सोच कर कि शायद मुकद्दर कभी तो जागेगा,
जमाने की ख़लिश को भी, अपना बना लिया मैंने
गुज़र जाता है खुशियों का उजाला बिना छुए मुझे,
ये नसीब था कि अंधेरों को, अपना बना लिया मैंने
कभी न भूल पाया मैं दिल से वो गुज़रे हुए लम्हात,
मगर फिर भी इस ज़माने को, गले लगा लिया मैंने
सोचता हूँ कि ज़िंदगी में शायद कुछ भला हो दोस्तो,
इसी की आस में दुश्मन को, दोस्त बना लिया मैंने...

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