यूँ ना समझो देश को स्वाधीनता यूँ ही मिली है
हर कली इस बाग़ की कुछ खून पीकर ही खिली है
बिछ गये वे नींव मे दीवार के नीचे गड़े है
महल अपने शहीदों की छातीयों पर ही खड़े है। जय हिन्द !

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