हर दस्तूर इस ज़माने का, निभाया हमने,
मगर न पा सके वो यारो, जो चाहा हमने !

न आये कभी काम जिन्हें समझा अपना,
पर उनके हर इशारे पे, सर झुकाया हमने !

बहुत रंग देखे हैं हमने ज़िन्दगी के दोस्तो,
पर उसका न कोई रंग, समझ पाया हमने !

न समझती है ये दुनिया अब दर्द के आंसू,
न कोई मेहरवां दुनिया में, ढूढ़ पाया हमने !

"मिश्र" ज़िन्दगी लगा दी अपनों के फेर में,
पर करें यक़ीं किस पर, न जान पाया हमने !

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