किसी को आखिर हम भुलाएँ कैसे,
किसी को बे सबब हम रुलायें कैसे !
झूठे सपने दिखाना नहीं आता हमें,
किसी को चंगुल में हम फँसाएं कैसे !
कितने ग़म दिए हैं ज़माने ने हमें,
किसी को दर्द ए दिल हम बताएं कैसे !
लोग उड़ाते हैं हंसी हालात की यूं ही,
किसी को मुकद्दर हम दिखाएँ कैसे !
सहते रहे कितनों के फिकरे उम्र भर,
मगर औकात उनकी हम बताएँ कैसे !
भले ही कुचल डाला दिल हमारा,
पर उनको ज़ख्म अपने हम दिखाएँ कैसे !
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