अब इस भीड़ में घुटता है दम, चलो कहीं और चलें,
ढूंढनी है सर-सब्ज़ फ़िज़ा, तो चलो कहीं और चलें !
सांस लेना भी है दूभर इस कंक्रीट के जंगल में अब,
गर लेनी है साँसें सुकून की, तो चलो कहीं और चलें !
तू भी दुखी है मैं भी दुखी हूँ इस मंज़र से अय दिल,
सुलझेंगे अपने भी मसले उधर, चलो कहीं और चलें !
कभी गूंजती थीं हर तरफ शहनाइयों की मीठी धुन,
अब तो हर तरफ है बस हंगामा, चलो कहीं और चलें !
कभी बहती थीं नदियां दूध की कहते हैं पुराने लोग,
मगर अब तो मौज़ है शराब की, चलो कहीं और चलें !
कभी महकती थीं खुशुबुएं इस हमारे शहर में दोस्तो,
इधर तो धुंध ही धुंध है हर तरफ, चलो कहीं और चलें !!!

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