अलग अपना घर बसा कर क्या मिला हमको
रिश्तों को अकारण तोड़ कर क्या मिला हमको
कभी कितना विशाल था अपने घर का आंगन
पर टुकड़ों में उसको बांट कर क्या मिला हमको
मुस्कराते थे कभी कितने फूल मन उपवन में
पर खुद ही उसे बरबाद कर क्या मिला हमको
सबसे अलग दिखने की चाहत का क्या कहिये
पर खुद को यूं मशहूर कर क्या मिला हमको
सोचता होगा भगवान भी सर पकड़ कर,
कि इस इंसान को बना कर क्या मिला हमको ?

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