बेवफाओं स वफ़ा की, ख्वाहिश भला क्या कीजे
उनके सामने दिल की, नुमाइश भला क्या कीजे
जिन्हें मिल जाता है रोज़ ही नया दौलत वाला,
उनसे मोहब्बतों की, फरमाइश भला क्या कीजे
जिनकी फितरत को देखा है ज़िन्दगी भर हमने,
फिर से उनके झूठ की, अजमाइश भला क्या कीजे
नहीं है अब हमें किसी मंज़िल की तलाश,
न जाना है जिस राह पर ,पैमाइश भला क्या कीजे...