सब कुछ तो लुट गया, बस ईमान रह गया
बदनाम हो कर भी, थोड़ा सा नाम रह गया
लोगों की ढपलियों पे बजते रहे राग उनके,
पर मैं था कि अपने राग से, अंजान रह गया
हुआ करती थीं कभी महफ़िलें रंगीन हमसे,
पर अब तो उन्हीं हाथों में, टूटा जाम रह गया
क्या मिलेगा खोजने से इस खाली से दिल में,
अब तो बिखर के टुकड़ों में, बेजान रह गया
मैं तो आया था दुनिया में मोहब्बत के वास्ते,
पर नफरतों के चलते, बस अरमान रह गया
न मिलेगा अब तो ढूढ़ने से कोई शरीफज़ादा,
अब तो शातिरों की बस्ती में, बदनाम रह गया
क्यों लिए फिरते हो 'मिश्र'अपने नाम का तुर्रा,
वो तो दुनिया के बाजार में, अब बेदाम रह गया