अपने दुखड़े, ओरों को सुनाने से क्या मिलेगा
अपने ज़ख्म, ओरों को दिखाने से क्या मिलेगा
ज़रा से लम्हें बस बचे हैं इस ज़िंदगी के यारो,
आखिर उन्हें, रो-रो कर गंवाने से क्या मिलेगा
कोई किसी के गम नहीं बांटता आज कल यहां,
आखिर तुम्हें, यूं फज़ीहत कराने से क्या मिलेगा
जो बोया है काटना पड़ेगा खुद को ही आखिर,
किसी ओर पर, तोहमत लगाने से क्या मिलेगा....

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