जमीं पे रह कर, आसमां झुकाने की फितरत है मेरी !
जो न मिल सका किसी को, पाने की हसरत है मेरी !
न चला हूँ मैं अकेला न चलूँगा कभी आगे भी दोस्तो,
ख़ुदाया दुनिया का प्यार, पाने की बस हसरत है मेरी !
ये ज़िन्दगी का सफर तो ग़मों का समन्दर है यारो,
पर इस राह की हर जोखिम, उठाने की आदत है मेरी !
मेरे अहसास को कोई समझे या न समझे ग़म नहीं,
मगर बुझते हुए चरागों को, जलाने की आदत है मेरी !
कोई माने या न माने ये तो दीगर सी बात है,
मगर यूंही हस्र नफरतों का, बताने की फितरत है मेरी !!!

Leave a Comment