ज़िंदगी से अब कोई उम्मीद नज़र नहीं आती
संभलने की अब कोई तदबीर नज़र नहीं आती
ज़नाजा तो उठना है एक दिन ज़रूर
पर अभी से क्यों रातों को हमें नींद नहीं आती
बहुत हंसते थे औरों के बदहाल पर हम
अब तो किसी हालात पर हमें हंसी नहीं आती
अब तो चुप रहना है मज़बूरी हमारी वर्ना
दुनिया में कौन है जिसे बात करनी नहीं आती
कितना चिल्लायें हम कि वो सुन पाएँ
सुना है हमारे रोने की उन्हें आवाज़ नहीं आती
हमारी आरज़ू है कि वो सलामत रहें सदा
पर हमें अपनी ये ज़िंदगी अब रास नहीं आती...
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