कभी ख़ारों, तो कभी फूलों की तरह दिखता है आदमी !
कभी अंधेरों, कभी उजालों की तरह दिखता है आदमी !
कभी दिखता है पत्थर #दिल कभी शराफत का पुतला,
तो कभी उलझे हुए, सवालों की तरह दिखता है आदमी !
कभी दिखता है #दुश्मन तो कभी नज़र आता है दोस्त,
तो कभी बिगड़ी हुई, रवायतों की तरह दिखता है आदमी !
कभी तो दिखता है उछलता डूबता सोचों के सागर में,
तो कभी छलकते हुए, जामों की तरह दिखता है आदमी !
कभी तो दिखता है वो खूंखार क़ातिल की तरह,
तो कभी ज़ख्मों पर, मरहमों की तरह दिखता है आदमी !