Shanti Swaroop Mishra

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Ye Har Majdoor Ka Kissa Hai

शोषण होता मज़दूरों का, किसी को इसका ध्यान नहीं
उनकी कीमत कितनी है, किसी को इसका ज्ञान नहीं
ठेकेदार और मालिक मिलकर, उनका शोषण करते हैं
खुद लाखों लाख कमा कर बस, अपना पोषण करते हैं
सुबह से लेकर शाम तलक, वो मेहनत करते रहते हैं
क्या उनका हिस्सा मिलता है, या यूं ही खटते रहते हैं
मालिक की अथाह कमाई में,मेहनत का कितना हिस्सा है
इसकी गणना कोई न करता,ये हर मज़दूर का किस्सा है
जिस विकास की बात कर रहे, वो मज़दूरों की थाती है
नेतागण जो डींग हांकते, वो कभी न हमको भाती है

Janta Ab Neta Ko Sabak Sikhayegi

वो तो मरने को भर्ती होते हैं, हमको क्या लेना देना
हम नेता चाहे देश को लूटें, जनता को क्या लेना देना
पता चलेगा नेता जी जब दौड़ लगाकर हाथ जोड़ कर आओगे
आज नहीं है समय आप पर कल घर घर अलख जगाओगे
तब पूंछेंगे हम हाथ दिखा कर अब क्या लेने देने आये हो
लूट लिया सब देश हमारा क्या अब वापस करने आये हो
जनता का क्या लेना देना अब जनता तुम्हें बतायेगी
जीवन भर तुम याद रखोगे ऐसा सबक सिखाएगी
जाओ पहले सद्कर्म करो तब हमसे तकरार करो
बेटों को सरहद पर भेजो फिर हमसे इसरार करो

Pyar Ka Deep Jala Andhera Door Karo

रात का अँधेरा तो सुबह होते ही छंट जायेगा
कोहरे का असर भी सूरज के साथ घट जायेगा
क्या करें उस रात का जो दिल में अँधेरा कर गयी
क्या करें उस धुंध का जो मन में बसेरा कर गयी

नहीं उजाला दिल के अंदर तो सूरज भी क्या काम करे
मन में तेरे भरा हलाहल तो अमृत भी क्या काम करे
प्यार का दीप जला कर दिल में घोर अँधेरा दूर करो
प्यार की बात बसा कर मन में घोर हलाहल दूर करो

बातें तो आती जाती हैं उनका मत संकलन करो
गुजर गया सो गुजर गया उसका मत आकलन करो

Neta Ke Liye Bholi Janta Kuch Nahi

भेड़ों का इक झुण्ड है जनता, जिसकी अपनी कोई डगर नहीं
आगे की भेड़ किधर जाती है, इसकी उनको कोई खबर नहीं.
आँख मूंद बस चल पड़ती हैं, परिणाम की उनको फिक्र नहीं
यूं ही खट जाती हैं मिट जाती हैं, फिर भी उनको अक्ल नहीं.
आंख खोलकर दुनियाँ देखो,परखो,तब अनुशरण करो
ये डगर कहाँ ले जायेगी, जी भर कर पहले मनन करो
नेता के लिये ये भोली जनता, केवल मात्र एक रस्ता है
उनके लिये तुम जीवन भी देदो, उनको दिखता सस्ता है

Ye Kursi ka Chaska Aisa Hai

ये कुर्सी का चस्का ऐसा जो सबको ही लग जाता है
छोड़ छाड़ सब धर्म कर्म उसके पीछे लग जाता है
जो धूनी अलघ जगाते थे वो भी इसके दीवाने हैं
जो अल्लाह की खिदमत में थे वो भी इसके दीवाने हैं
आम आदमी मूरख बन कर इनका साथ निभाता है
कुर्सी जब मिल जाती है तो उसको ही आंख दिखाता है
कालिज का जिसने मुंह नहीं देखा वो मंत्री बन जाता है
पढ़े लिखों का आका बनकर उन पर रौब जमाता है
यौवन बीता आया बुढ़ापा पर फिर भी कुर्सी प्यारी है
इसे लोकतंत्र कहते हैं भाई इसकी तो महिमा न्यारी है