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Shanti Swaroop Mishra
Jis Basti Mein Andhe Rehte Hon
जिस बस्ती में अंधे रहते हों वहां आईनों की जरूरत कोई नहीं
जो लाठी से डगर को पहचाने वहां समझाने की जरूरत कोई नहीं
जो जीते और मरते अपने लिये वहां मुहब्बत की जरूरत कोई नहीं
जो मन का उजियारा ना चाहे वहां उपदेशों की जरूरत कोई नहीं
Zindagi ki manzil shamshan kyun hai
गर गुलिश्तां है जिंदगी, तो इसकी मंज़िल श्मशान क्यों है
बिछड़ना ही है अगर प्यार में, तो वो इतना हैरान क्यों है
गर जीना है मरने के लिये, तो फिर जिंदगी वरदान क्यों है
अजनबी से क्यों होजाता है प्यार, दिल इतना नादान क्यों है
इस सच को सब जानते हैं लेकिन फिर भी परेशान क्यों हैं
गुलशन में कभी तो फिज़ां आयेगी "मिश्र" इतना हैरान क्यों हैं
Usko Kissan Ham Kehte Hain
पैर हों जिनके मिट्टी में, दोनों हाथ कुदाल पर रहते हैं
सर्दी , गर्मी या फिर बारिश, सब कुछ ही वे सहते हैं
आसमान पर नज़र हमेशा, वे आंधी तूफ़ां सब सहते हैं
खेतों में हरियाली आये, दिन और रात लगे रहते हैं
मेहनत कर वे अन्न उगाते, पेट सभी का भरते हैं
वो है मसीहा मेहनत का, उसको किसान हम कहते हैं
Netaon Ki Parakh Kyun Nahi Karte
आलू प्याज छाटने में हम, कितना वक्त लगाते हैं
सब्जी मॅंडी में घूम घूम कर, छाट के सब्जी लाते हैं
पर क्या कारण है नेताओं की, परख नहीं हम करते
क्यों उनको सब्जी की तरह, छाट के अलग नहीं करते
जिस प्रकार इक सड़ा टमाटर, सब्जी का भाग नहीं होता
उसी तरह इक कुटिल आदमी, देश का भाग्य नहीं होता
बस इतनी सी बात समझ कर,गर जनता जागरूक होती
तो कभी स्वदेश की माली हालत, इतनी कुरूप नहीं होती