Shanti Swaroop Mishra

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Aaj Marne Ka Maza Aa Raha Hai

आज तो मेरे मरने का मज़ा आ रहा है,
हर कोई मेरे करीब आ रहा है
जो मुझसे हमेशा ही दूर भागता था,
वो भी आज मेरे करीब आ रहा है
जिसने सदा मुझे अपना शत्रु कहा,
वो भी आज मेरे ही गुण गा रहा है
मेरा चेहरा कभी जो न देखा प्यार से,
वो बस मुझको निहारे जा रहा है
कतरन भी जिसने न दी जिंदगी में,
वो मुझ को शालें उडाये जा रहा है
अब क्या होगा इन दुशालों का भाई,
क्यों फ़र्ज़ अपना निभाये जा रहा है
गिर गया तो कोई न आया उठाने,
आज हर कोई मुझको उठाए जारहा है
अपनों के कंधों पर लदा हूं मैं पर,
पीछे से हर कोई कंधा लगाये जा रहा है
गर इतना सा प्यार् मुझे जीते जी मिलता,
जितना मरने पे दिया जा रहा है
काहे को फिरता अजनबी सा बन कर,
क्यों होता ऐसा जो किया जा रहा है

zindagi ka mela ab

जिंदगी का मेला अब उखड़ता सा जा रहा है
कल तक थी रौनक अब उजड़ता जा रहा है
कितने लोग आये थे गये थे कुछ पता नहीं
कितने अपने कितने पराये थे कुछ पता नहीं
बहुत से अजनबी दूर से भी आये थे मेले में
कुछ अपने बन गये कुछ बह गये थे रेले में
जो इस मेले में कमाया था इसी में गंवा दिया
जीवन के सारे झंझटों को अपने में समा लिया
समझो खत्म होता जा रहा ये ज़िंदगी का मेला
मेले में आया था अकेला जाना भी होगा अकेला

Door ki roshni kis kaam ki

किसी और की दौलत, किसी के किस काम की
किसी और की शौहरत, किसी के किस काम की
जो किसी के पास का अंधेरा न मिटा सके,
वो दूर से दिखती रोशनी, किसी के किस काम की ?

Dost Dushman bante ja rahe hain

पता नहीं ये दुनिया किधर जा रही है
इंसानियत खून के आंसू वहा रही है
दुश्मनी का जैसे सैलाव आ गया है,
दोस्ती, दुश्मनी में बदलती जा रही है

Ek Ishwar har jagah samaya hai

हम तो एकदम अबोध थे, पर दुनिया ने क्या बना दिया
किसी को हिन्दू, किसी को ईसाई तो किसी को मुस्लिम बना दिया
हम सोचते थे कि ईश्वर एक है कण कण में समाया है,
पर उसके लिये कहीं गिरज़ा, कहीं मस्ज़िद तो कहीं मंदिर बना दिया