आज तो मेरे मरने का मज़ा आ रहा है,
हर कोई मेरे करीब आ रहा है
जो मुझसे हमेशा ही दूर भागता था,
वो भी आज मेरे करीब आ रहा है
जिसने सदा मुझे अपना शत्रु कहा,
वो भी आज मेरे ही गुण गा रहा है
मेरा चेहरा कभी जो न देखा प्यार से,
वो बस मुझको निहारे जा रहा है
कतरन भी जिसने न दी जिंदगी में,
वो मुझ को शालें उडाये जा रहा है
अब क्या होगा इन दुशालों का भाई,
क्यों फ़र्ज़ अपना निभाये जा रहा है
गिर गया तो कोई न आया उठाने,
आज हर कोई मुझको उठाए जारहा है
अपनों के कंधों पर लदा हूं मैं पर,
पीछे से हर कोई कंधा लगाये जा रहा है
गर इतना सा प्यार् मुझे जीते जी मिलता,
जितना मरने पे दिया जा रहा है
काहे को फिरता अजनबी सा बन कर,
क्यों होता ऐसा जो किया जा रहा है
जिंदगी का मेला अब उखड़ता सा जा रहा है
कल तक थी रौनक अब उजड़ता जा रहा है
कितने लोग आये थे गये थे कुछ पता नहीं
कितने अपने कितने पराये थे कुछ पता नहीं
बहुत से अजनबी दूर से भी आये थे मेले में
कुछ अपने बन गये कुछ बह गये थे रेले में
जो इस मेले में कमाया था इसी में गंवा दिया
जीवन के सारे झंझटों को अपने में समा लिया
समझो खत्म होता जा रहा ये ज़िंदगी का मेला
मेले में आया था अकेला जाना भी होगा अकेला
किसी और की दौलत, किसी के किस काम की
किसी और की शौहरत, किसी के किस काम की
जो किसी के पास का अंधेरा न मिटा सके,
वो दूर से दिखती रोशनी, किसी के किस काम की ?
हम तो एकदम अबोध थे, पर दुनिया ने क्या बना दिया
किसी को हिन्दू, किसी को ईसाई तो किसी को मुस्लिम बना दिया
हम सोचते थे कि ईश्वर एक है कण कण में समाया है,
पर उसके लिये कहीं गिरज़ा, कहीं मस्ज़िद तो कहीं मंदिर बना दिया