Shanti Swaroop Mishra

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Unki khabar aane par

दिल उछलता है अब भी, उनकी खबर आने पर !
वो भुला देता है दर्द सारे, उनकी खबर आने पर !
बदल गया वक़्त मगर न बदला ये दिल अभी भी,
हो जाता है जवान फिर से, उनकी खबर आने पर !
बस फंसे रहना अंधेरों में अपना #नसीब है दोस्तो,
जला देते हैं दिल के दीये, उनकी खबर आने पर !
अब हो चुके हैं ख़त्म सारे #मोहब्बत के वो फ़साने ,
अटकती हैं साँसें फिर भी, उनकी खबर आने पर !
उनके जलवे भी देखे हैं उनकी बेरुखी भी देखी है,
मगर भूल जाता है सब कुछ, उनकी खबर आने पर !!!

Apno se mile gham

गुज़रे हुए ज़माने, कभी भुलाये नहीं जाते ,
कभी अपनों से मिले ग़म, बँटाये नहीं जाते !
ज़रा महफूज़ रखिये अश्क़ों को आँखों में,
किसी को जिगर के धारे, दिखाए नहीं जाते !
कहीं छुपा के रख लो अपने सुनहरे लम्हें,
कभी ख़ुशी के वो ख़जाने, लुटाये नहीं जाते !
चाहत है अपनों की तो ज़रा गौर से परखो,
यूं ही फ़िज़ूल में दिन बुरे, बुलाये नहीं जाते !
छोड़ो बात सब की खुद को बदलो "मिश्र",
यूं ख़ुदग़र्ज़ी से इधर काम, चलाये नहीं जाते !!!

Rishte tamaam kar gye

वो आये थे मेरे घर पे, मगर बदनाम कर गए !
वो न जाने कितनी तोहमतें, मेरे नाम कर गए !
सोचता हूँ कि ये वक़्त भी क्या चीज़ है यारो,
जिसके बदलते ही वो, रिश्ते तमाम कर गए !
जूझते रहे ताउम्र जिनकी आफतों के किये,
वो ही तमाशा औकात का, सरे आम कर गए !
महफूज़ रखा दिल में जिन्हें अपना समझ के,
वो उसमें ही ज़ख्म दे के, जीना हराम कर गए !
सफर में हर ठोकर का इक मतलब है "मिश्र",
खुश हूँ कि अगला कदम वो, आसान कर गए !!!

Dil lagate kyon hai

ख़ुद ही काँटों भरे ये रास्ते, हम बनाते क्यों हैं,
यारो पत्थर दिलों से रिश्ते, हम निभाते क्यों हैं !
जब जानते हैं दुनिया की बेरुख़ी का आलम,
तो औरों को खुद उजड़ के, हम बसाते क्यों हैं !
न समझता है कोई भी औरों की मुश्किल यारो,
तो #दिल में औरों के दर्दो ग़म, हम बिठाते क्यों हैं !
ज़रा सी बात पर कभी अपने पराये नहीं हो जाते,
फिर दुश्मनों से दिल आखिर, हम लगाते क्यों हैं !
जो खड़ा था कभी साथ साथ हर कदम पे "मिश्र",
सबसे ज्यादा ही दिल उसका, हम दुखाते क्यों हैं !

Zindagi ka asar kya hoga

भला मुर्दों के शहर में, ज़िन्दगी का असर क्या होगा,
बनावट के इन मेलों में, सादगी का असर क्या होगा !
जिसने न कभी समझी, रहमो करम की भाषा यारो,
उन पत्थर दिलों में कभी, बंदगी का असर क्या होगा !
जो जलते ही रहते हैं रात दिन, नफरतों की आग में,
मैले दिलों में उनके, आशिक़ी का असर क्या होगा !
जिन्हें होता है नशा सिर्फ, अपनों का लहू पी कर ही,
ऐसी शैतान खोपड़ी में, मयकशी का असर क्या होगा !
टपकते हैं जुबाँ से जिनकी, ज़हरों से भरे अलफ़ाज़,
उनकी कडुवी जुबान पे, चाशनी का असर क्या होगा !!!