Log Armaan Kuchal Dete Hein
लोग किसी के अरमानों को, बेरहमी से कुचल देते हैं
पहले सिर पर बिठाते हैं, फिर ज़मीं पर पटक देते हैं
यही तो चाल है दोरंगे लोगों की,
पहले तो मतलब निकालते हैं, फिर हाथ झटक देते हैं
लोग किसी के अरमानों को, बेरहमी से कुचल देते हैं
पहले सिर पर बिठाते हैं, फिर ज़मीं पर पटक देते हैं
यही तो चाल है दोरंगे लोगों की,
पहले तो मतलब निकालते हैं, फिर हाथ झटक देते हैं
वो हमारी जान भी लेलें तो कोई बात नहीं,
अगर हम मुंह खोलें तो हंगामा
वो झूठ की महफिल सजाएं तो कोई बात नहीं,
अगर हम सच बोलें तो हंगामा
अपने झूठ का खंडन वो करदें तो कोई बात नहीं,
अगर हम कुछ बोलें तो हंगामा
जब जनता फंसाती है उनको तो दोष हमको देते हैं,
अगर हम खंडन कर दें तो हंगामा
अभी तो आधा ही सफर गुज़रा है अभी तो रास्ता बाकी है
अभी बामुश्किल यहाँ तक पहुंचे हैं अभी तो फासला बाकी है
मुश्किलों से भरा है ये रास्ता ज़िंदगी का.
कारवाँ अभी से क्यों थक गया अभी तो पूरा सफर बाकी है
अपने मतलब के लिये लोग, कितना बदल जाते हैं
वे अपनों को पीछे धकेल कर, आगे निकल जाते हैं
कोई मरता भी हो तो उनकी बला से,
वो तो लाशों पर पाँव रखकर, आगे निकल जाते हैं
कोई तो अपने घर पर सोये, कोई सड़कों पर रैन गुजारे
ये भी कैसा नसीब है
कोई अपनी कारों में घूमे, पर कोई बेचारा पैदल भटके
ये भी कैसा नसीब है
कोई किसी को भिक्षा देता, कोई किसी से भिक्षा लेता
ये सब कितना अजीब है
कोई खाना बर्बाद करे, कोई एक एक रोटी को तरसे
ये सब कितना अजीब है