Shanti Swaroop Mishra

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Dagar se bhatkna mat

कभी भी जीत पे अपनी, फड़कना मत यारो,
कभी भी हार पर अपनी, भड़कना मत यारो !

ये जो #ज़िन्दगी है बस चलती रहेगी ऐसे ही,
कभी ईमान की डगर से, भटकना मत यारो !

न जाएंगी चल कर साथ ये दौलतें ये सौहरतें,
कभी अपने किये सुकर्म से, पलटना मत यारो !

हसरतों का क्या है वो तो मचलती हैं हरदम,
कभी वक़्त के सैलाब से, अटकना मत यारो !

इस दुनिया में साथ सबका ज़रूरी है "मिश्र",
अपनी ही ताल पर ख़ालिस, मटकना मत यारो !

Kirdaar nahin badalte

चेहरे बदल जाते हैं, मगर किरदार नहीं बदलते,
कितना भी करें ढोंग, मगर #अंदाज़ नहीं बदलते !

जो आता है चमकाता है पहले अपनी किस्मत,
अफ़सोस, कि जनता के, दिन रात नहीं बदलते !

कुर्सी भी बड़ी अजीब है भुला देती है सब वादे,
होती हैं नूरा कुश्तियां, मगर हालात नहीं बदलते !

मुडना है बेचारी भेड़ को ही चाहे कोई भी मूंडे,
बस हाथ बदल जाते हैं, पर हथियार नहीं बदलते !

फ़र्क नहीं पड़ता उनके जाने या इनके आने से,
होते हैं तमाशे रोज़ ही, मगर आसार नहीं बदलते !

न बदली है न बदलेगी अपनी तो तक़दीर "मिश्र"
बदल जाते हैं राजे, पर सिपहसालार नहीं बदलते !!!

Zindagi se kya gila

ज़िन्दगी से क्या गिला, हमें ख़्वाहिशों ने मार डाला,
पिला कर जाम उल्फ़त का, साजिशों ने मार डाला !

एक पल भी न जी सके यारो अपनों की बेरुख़ी में,
भला दुश्मनों से क्या गिला, हमें दोस्तों ने मार डाला!

घुसते रहे हम भीड़ में बस मोहब्बतों की तलाश में,
नफरतों से क्या गिला, हमें मोहब्बतों ने मार डाला!

हमें तो वक़्त के तूफ़ान ने पटक डाला दलदलों में,
यूं दलदलों का दोष क्या, हमें बुलंदियों ने मार डाला !

हम कर के यक़ीन यारों पर पछताते रहे उम्र भर,
उनके फरेब से क्या गिला, हमें आदतों ने मार डाला !

आये थे इस शहर में कमाने की ललक लेकर के,
शहर ने सब कुछ दिया पर, हमें बंदिशों ने मार डाला !

Matlab parast aadmi

जब चाहा तो पत्थरों को, भगवान् बना दिया !
जब चाहा तो घर आँगन की, शान बना दिया !
कितना मतलब परस्त है दुनिया का आदमी,
जब मतलब निकल गया, तो अंजान बना दिया !
मुझको हक़ नहीं अब अपनों को राय देने का,
यारो अपने ही घर में मुझे, मेहमान बना दिया !
बड़ी हसरतों से निभाया था हर रिश्ता मगर,
#ज़िन्दगी को इस आदत ने, शमशान बना दिया !
कहने को हम क्या कहें उन बेख़बर लोगों से,
जिन्हें खुद की फ़ितरतों ने, शैतान बना दिया !
गर #मोहब्बत भी करे कोई तो कैसे करे "मिश्र",
उसको भी आज लोगों ने, अहसान बना दिया !!!

Faasle mita sako to

ज़माने की साजिशें, मिटा सको तो कहो,
गर दिल के फासले, मिटा सको तो कहो !
इधर तोड़ते हैं हर कदम पर हौसला लोग,
फरेबी इन चालों को, मिटा सको तो कहो !
आसान इतनी भी नहीं जीने की राहें दोस्त,
उन पर सजे ख़ारों को, हटा सको तो कहो !
हर कदम पे मिलते हैं ज़िन्दगी के बाज़ीगर,
कुछ तुम भी करतब, दिखा सको तो कहो !
न मिलेगा रहबर कोई इस ज़माने में ,
खुद ही खुद का रास्ता, बना सको तो कहो !