वक़्त संभला, तो दुश्मन भी यार हो गए,
पर ख़ास अपनों के चेहरे, बेज़ार हो गए !
वो दोस्त हुआ करते थे कभी फाकों में,
मगर पेट भरते ही, दौलत के यार हो गए !
न भाता उन्हें तो अब यारों का चेहरा भी,
कभी फूल हुआ करते थे, अब खार हो गए !
अब खो गए वो भी इस मतलबी दुनिया में,
बदवक़्त के साथी भी, अब बदकार हो गए !
कैसे बिकता है ईमान इधर देखा है हमने,
अब तो लोग खुद ही, खुला बाज़ार हो गए !
बन के बरगद जिन्हें छांव दी हमने,
उनकी ही कुल्हाड़ी के, हम शिकार हो गए !
दौर ए गर्दिश का असर, कब तक रहेगा
यूं ही उलझनों का सफर, कब तक रहेगा
कभी तो टूटेगा आदमी का हौसला यारो,
न जाने आफतों का कहर, कब तक रहेगा,
ज़िंदगी लगा दी हमने ज़िंदगी की खोज में,
आखिर मरने जीने का डर, कब तक रहेगा
जिसने मुद्दतें गुज़ार दीं हवाओं से झगड़ते,
आखिए वो बूढा सा शज़र, कब तक रहेगा
भटकता है दिल रौशनी की चाह में हरदम,
आखिर इन अंधेरों का डर, कब तक रहेगा
भुला दी है सब ने "मिश्र" मोहब्बत की भाषा,
आखिर ये नफरतों का ज़हर, कब तक रहेगा
अपनी ज़िन्दगी ने, कितने ही बवाल देखे हैं !
जो थे कभी अपने, उनके भी कमाल देखे हैं !
वक़्त बिगड़ते ही फेर लीं जिसने नज़र यारो,
इन आँखों ने कभी, उसके भी हवाल देखे हैं !
न रही इन आँखों में तलब दीदार की अब,
पर क़रीब से कभी, हमने भी जमाल देखे हैं !
न हुए कभी पूरे जो देखे थे ख्वाब हमने भी,
हमने हसीनों के, नखरे भी बेमिशाल देखे हैं !
दिल में उभरते हैं कभी उल्फत के उजाले,
मगर नफ़रत, के अँधेरे भी बेमिशाल देखे हैं !
न पड़ो "मिश्र" इस मोहब्बत के पचड़े में तुम,
हमने दिवानों के, चेहरे भी बदहवाल देखे हैं !!!