यूं बेसबब इतनी ज़िल्लतें, उठाते ही क्यों हो
यूं आँखों को हसीं सपने, दिखाते ही क्यों हो
गर आ के चले जाना ही है, फितरत तुम्हारी
तो यूं ज़िन्दगी में किसी के, आते ही क्यों हो
जब देना ही मात्र धोखा है, मक़सद तुम्हारा
तो फिर यूं रो-रो के रिश्ते, बनाते ही क्यों हो
कर देती जुबाँ ही जब, खुलासा राज़ दिल के
तो फिर यूं चेहरे पे मुखौटे, लगाते ही क्यों हो
न देखता है कोई भी अब, मुसीबत किसी की
तो हर किसी को दर्द अपने, बताते ही क्यों हो
जहाँ मिलती हैं ठोकरें ही, हर कदम पे 'मिश्र'
तो उस डगर पे कदम अपने, बढ़ाते ही क्यों हो
Hindi Shayari Status
देखे बड़े करीब से, बिगड़ते रिश्ते
कदम दर कदम पे, बदलते रिश्ते
यूं ही फंस कर कपट के जालों में,
एक एक निवाले को, तरसते रिश्ते
बहुत मुश्किल है न समेंट पाओगे,
अपनों की घातों से, बिखरते रिश्ते
कोंन लेता है खबर किसी की अब,
दिखते हैं अभागे से, सिसकते रिश्ते
हाबी है झुर्रियों पे चेहरों की चमक,
दिखते हैं अनाथों से, बिलखते रिश्ते
मर चुकीं तमन्नाएँ माँ बाप की यारो,
हमने देखे हैं दरबदर, भटकते रिश्ते
कितनी कहूँ दास्ताँ रिश्तों की ‘मिश्र’
मिलते हैं हर गली में, तड़पते रिश्ते
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हमें मोहब्बत की अदाएं, दिखाना नहीं आता
हमको महल आसमां पर, बनाना नहीं आता
ज़रा सा कच्चे हैं हम यारो इश्क़ के मसले में
हमें अपना चीर के सीना, दिखाना नहीं आता
है अंदर कितनी चाहत ये तो दिल जानता है,
हमको यूं तमाशा सरेआम, दिखाना नहीं आता
जाने लिखे हैं तराने कितने मुहब्बत पर हमने,
मगर यूं महफ़िलों में हमको, सुनाना नहीं आता
डरते हैं हम तो इस जमाना की बुरी नज़रों से,
मगर फिर भी हमें खुद को, छुपाना नहीं आता
हम तो वैसे ही हैं 'मिश्र' जैसे दिखते हैं ऊपर से,
मुखौटा वनावटों का हमको, लगाना नहीं आता
Hindi Shayari Status
निकल पड़ते हैं जज़्बात, क्या करें
दिल में अटकी है हर बात, क्या करें
उमड़ता रहता है दर्दे दिल अंदर ही,
अब न करता है कोई बात, क्या करें
अपने ही मसलों में मशगूल हैं सब,
अब न बढ़ाता है कोई हाथ, क्या करें
चाहत है हमसफ़र की हमें भी यारो,
मगर न आता है कोई साथ, क्या करें
न मिलता शरीफजादा कोई भी हमें,
जिगर में भरी है ख़ुराफ़ात, क्या करें
लगा दी उम्र हमने सुबह की आस में,
पर न गुज़री वो काली रात, क्या करें
कैसा नसीब पाया है हमने भी 'मिश्र',
न संभलती है बिगड़ी बात, क्या करें
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ज़रा सी देर में, इसरार बदल जाते हैं
वक़्त के साथ, इक़रार बदल जाते हैं
दौलत है तो सब दिखते हैं अपने से,
वर्ना तो यारो, दिलदार बदल जाते हैं
न करिये यक़ीं अब इन हवाओं पे भी,
मिज़ाज़ इनके, हर बार बदल जाते हैं
भूल जाओ अब तो सौहार्द की भाषा,
वक़्त पड़ने पर, घरवार बदल जाते हैं
जब तक समझ आते हैं अपने पराये,
जीने के तब तक, आसार बदल जाते हैं
न आजमाइए अब खून के रिश्तों को,
वक़्त पे उनके, व्यवहार बदल जाते हैं
न ढूंढिए 'मिश्र' अब मोहब्बत को इधर
देखते ही देखते, बाज़ार बदल जाते हैं
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