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कभी क़ातिल रिहा, कभी मासूम लटक जाता है,
फरेबों के सहरा में, बेचारा सच भटक जाता है !
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गिर के फिर संभलने का, मज़ा ही कुछ और है ,
अपने पैरों से चलने का, मज़ा ही कुछ और है !
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महक #दोस्ती की इश्क़ से कम नहीं होती,,,
इश्क़ से
ज़िन्दगी शुरू या खत्म नहीं होती...
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सब कुछ लुटा कर, कुछ मिला तो क्या मिला,
अरे इज़्ज़त गवां कर, कुछ मिला तो क्या मिला !
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मेरी
ज़िन्दगी को तू, यूं ही परेशान मत कर,
मेरी शराफ़तों को तू, यूं ही बदनाम मत कर !
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न करता कोई याद, तो ख़ुद ही याद कर लो ,
टूटे हुए रिश्तों को, फिर से आबाद कर लो !
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ज़िंदगी तो बेसुरा, एक राग बन गयी,
जीने की तमन्ना, अब राख बन गयी !
हम हम न रहे तुम तुम न रहे दोस्त,
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ज़रा सी है ये
ज़िन्दगी, तक़रार क्या करना !
जब रहना है साथ साथ, तो रार क्या करना !
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कैसे कटेगी
ज़िन्दगी, यूं उजड़ा चमन लिए हुए,
चेहरे से उड़ती हवाइयां, दिल में रुदन लिए हुए !
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जीते रहे हैं
ज़िन्दगी, किसी का उधार समझ कर ,
निभाते रहे हम रिश्ता, किसी को प्यार समझ कर !
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