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हर दिल में अजीब सी, मैं घुटन देखता हूँ
पतझड़ से उजड़ा हुआ, मैं चमन देखता हूँ
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ऐ #दोस्त मुझे कभी तो याद किया होता
किसी के
हाथों कभी तो #पैगाम दिया होता
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सामने पड़ते हैं,
हाथ हिला कर निकल जाते हैं
वरना अंजान बन, सर झुका कर निकल जाते हैं
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मूर्ख है दीपक, जो खुद को जलाता है जमाने के लिये
खुद को मिटा देता है, औरों का अंधेरा मिटाने के लिये
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मुसाफिर हूँ दोस्तो, अपनी राह चला जाऊँगा
अकेला था सफर में मैं, अकेला चला जाऊँगा
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आधी उम्र तो, ख्वाहिशों के नाम हो गयी
जो बची थी वो, नफरतों के नाम हो गयी
मोहब्बतों के लिये वक़्त ही न बचा अब,
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तमाम ठोकरेँ खाने के बाद
ये अहसास हुआ मुझे
.
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कुछ नही कहती
हाथों की लकीरें
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भिखारी भीख माँगने एक घर के दरवाजे पर पहुँचा।
दस्तक दी। अंदर से एक पैंतालीस साल की महिला आई...
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ज़िंदगी तो वीरान है, और बस कुछ भी नहीं
यूं धड़कनें ही शेष है, और बस कुछ भी नहीं
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कितनो की तकदीर बदलनी है तुम्हें,
कितनो को रास्ते पे लाना है तुम्हें...
अपने
हाथों की लकीरों को मत देख,,,
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