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जाने कोंन सा रिश्ता, उनसे जुड़ने लगा है !
हर कदम उनकी तरफ, क्यों मुड़ने लगा है !
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हवा में अनजान सा डर, बसा क्यों है,
हर लम्हा ज़िन्दगी का, खफा क्यों है !
गुज़रती हैं स्याह रातें करवटें बदलते,
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यारो कोरोना ने सब को, वफ़ादार बना दिया
रिश्तों की भारी घुटन को,
हवादार बना दिया
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मैं फूलों की दास्ताँ, काँटों की जुबानी लिखता हूँ
ख़िज़ाँ की जुबाँ से, गुलशन की कहानी लिखता हूँ
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अब तक तो
हवाएं थीं, तूफ़ान अभी बाक़ी है
यारो न निकलिए बाहर, शैतान अभी बाक़ी है
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ज़रा सी देर में, इसरार बदल जाते हैं
वक़्त के साथ, इक़रार बदल जाते हैं
दौलत है तो सब दिखते हैं अपने से,
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