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चुप रहना मुनासिब
समझा तो खुद बखुद बिखर गए
बिखरने का यह आलम, अब कहें भी तो किसे कहें,
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आलू प्याज छाटने में हम, कितना वक्त लगाते हैं
सब्जी मॅंडी में घूम घूम कर, छाट के सब्जी लाते हैं
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जिस बस्ती में अंधे रहते हों वहां आईनों की जरूरत कोई नहीं
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अजीब लगती है #शाम कभी-कभी
#जिंदगी लगती है बेजान कभी-कभी
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समझ आये तो हमें भी बताना कि
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कभी मेरी छांव तले, पथिकों का शहर हुआ करता था
कभी मेरी बाहों में ,चिड़ियों का घरवार हुआ करता था
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धूल के ज़र्रे, पत्थर के टुकड़े को भी पहाड़
समझते हैं
चूहे, हल्की आवाज़ को भी शेर की दहाड़
समझते हैं
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मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है ,
चोरों के संग पहरेदार नज़र आते है
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लोग #मोहब्बत में, बहुत बेज़ार नज़र आते हैं
जागती उनकी #आँखों में, वो ही वो नज़र आते हैं
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एक टीचर ने मजाक में बच्चो से कहा
जो #बच्चा कल #स्वर्ग से मिट्टी लायेगा,
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छोटी छोटी खुशियाँ ही, जीवन को सफल बनाती हैं,
ये छोटी छोटी राहें ही, हमें #मंज़िल तक पहुँचाती हैं,
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