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Qatil ko farishta samajh baithe

फरेबियों को तो हम, अपना समझ बैठे
हक़ीक़त को तो हम, सपना समझ बैठे
मुकद्दर कहें कि वक़्त की शरारत कहें,
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Dushman ko dost bna lenge

रूठे गर जमाना भी, तो मना लेंगे हम,
भड़कते हैं शोले भी, तो बुझा देंगे हम !
अपनों का साथ हो तो ग़म कैसा यारो,
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Dil Dukha Kar Chale Gye

आये थे ऐसे कि, दिल में समा कर चले गए,
सो रहे थे चैन से, कि वो जगा कर चले गए !
न ठहरे वो इक पल भी मेरे गरीबखाने पर,
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Dil Ke Jalan Humse poochho

दिल के शोलों की जलन, हमसे पूछो,
कैसी है कांटो की चुभन, हमसे पूछो,
हो चुका है ख़त्म दौर-ए-शराफत अब,
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Main Rona Chahta Hoon

कहीं बैठ के कोने में, मैं रोना चाहता हूँ ,
ग़मों को आंसुओं से, मैं धोना चाहता हूँ !
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