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जीने की कहीं चाह बाकी है
ना जानें कितनें अभी #गुनाह बाकी हैं,
बदनाम ना होंगे तेरे #
शहर में इस मरतबा
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खड़ा हूँ इस तरह #ख़ामोश, इस तरह #तन्हा,
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कभी मेरी छांव तले, पथिकों का
शहर हुआ करता था
कभी मेरी बाहों में ,चिड़ियों का घरवार हुआ करता था
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एक #अजनबी से बात क्या हुई क़यामत हो गयी
सारे #
शहर को इस #चाहत की खबर हो गयी
क्यूँ ना #दोष दू इस #दिल-ऐ-नादाँ को
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शहर की चका चोंध में, सब कुछ भुला दिया हमने
मिट्टी का वो घर, वो आँगन, सब भुला दिया हमने
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हवाओ सावधान, अपना रास्ता बदल कर निकल जाओ
ना बदल सको दिशा, तो
शहर के ऊपर से निकल जाओ
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हर किसी को अपना दोस्त बनाया नहीं जाता
हर किसी को दर्द ए दिल सुनाया नहीं जाता
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क्यों लगी है आग सी आज इन हवाओं में
जल रहा है तन बदन आज इन फिज़ाओं में
दिल्लगी को प्यार समझ बैठे हम उनका
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अब ज़िंदगी बनाने का समय आ गया है
अब अरमां सजाने का समय आ गया है
ये ख़बर है कि आने वाले हैं वो
शहर में
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कितना कठिन रास्ता है...
कितनी कठिन #डगर है...
है #इश्क जिसकी #मँजिल...
#मौत उसका वो #सफ़र है....
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