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बेवफाओं स वफ़ा की, ख्वाहिश भला क्या कीजे
उनके सामने दिल की, नुमाइश भला क्या कीजे
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जिस शख्स में हमदर्द त
लाशती हैं मेरी नज़रें
वो ही क्यूँ दर्द बाँट जाता है ?
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हमसे नफरतों का बोझ अब सहा नहीं जाता
हमसे अपनों के फरेबों में अब रहा नहीं जाता
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कितने मतलबी हैं हम, कि अपना ही घर देखते हैं !
गर जलता है घर किसी का, तो अपने हाथ सेकते हैं !
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दिल को किसी आहट की आस रहती हैं,
नजरो को किसी सूरत की त
लाश रहती हैं,
यूं तो हर चीज़ है मेरी #जिंदगी में।
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कुछ अलग से, काम करने की आदत है हमें,
हर ज़ुल्म को, हंस के सहने की आदत है हमें !
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निगाहों को न जाने किसकी त
लाश है,
रात दिन उसको ही पाने की प्यास है !
न कोई नाता न कोई रिश्ता है उससे ,
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नाज हमें है उन वीरों पर,जो मान बड़ा कर आये हैं
दुश्मन को घुसकर के मारा,शान बड़ा कर आये हैं...
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#जिंदगी को इतना सिरियस
लेने की जरूरत नही यारों,
यहाँ से जिन्दा बचकर
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कभी क़ातिल रिहा, कभी मासूम लटक जाता है,
फरेबों के सहरा में, बेचारा सच भटक जाता है !
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