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बेवफाओं स वफ़ा की, ख्वाहिश भला क्या कीजे
उनके सामने दिल की, नुमाइश भला क्या कीजे
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जो थे दिल के मेहमान कभी, जाने कैसे निकल गए
पक्के थे अपने रिश्ते, क्यों मोम के जैसे पिघल गए
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पंडित जी हवन करते समय एक
चम्मच घी आग में ङालते और
एक चम्मच घी अपने ङिबबे मे ङालते जा रहे थे!
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हमें तो हर कदम पर, ग़मों का ज़हर पीना पड़ा है
जीने की चाहत है मगर, घुट घुट कर जीना पड़ा है
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हम तो तेरे दिल में फूल खिलाने चले आये
तेरे ग़मों को अपने दिल में बसाने चले आये
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क्या क्या खोया क्या पाया, हमको कुछ भी याद नहीं !
किसने अ
रमानों को कुचला, हमको कुछ भी याद नहीं !
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न जाने इस जुबां पे, वो दास्तान किसके हैं,
दिल में मचलते हुए, वो अ
रमान किसके हैं ?
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दुनिया में खुशियों के नज़ारे, कम नज़र आते हैं,
हर किसी के दिल में, गम ही गम नज़र आते हैं !
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मेरी ज़िन्दगी का हर पल, एक किस्सा बन गया,
मेरा वज़ूद किसी और का, एक हिस्सा बन गया !
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हैं क
रम उनके दोषी मगर, तक़दीर को दोष देते हैं
वो बोते हैं खुद बबूल मगर, जमीन को दोष देते हैं
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