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हर कोई हर किसी में, कसूर ढूंढता है।
न मिलता है गर पास, तो दूर ढूंढता है।
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क्यों लिखते हो अय दोस्त, ये तराने मोहब्बतों के ,
जब कि दिखते हैं हर तरफ, अब साये नफ़रतों के !
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यारो क्यों जान अपनी, लुटाने पे तुले हो
क्यों अपने साथ सबको, मिटाने पे तुले हो
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कभी नाम बदल लेता है, कभी काम बदल लेता है
सब कुछ पाने की ललक में, वो ईमान बदल लेता है
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यारो कोरोना ने सब को, वफ़ादार बना दिया
रिश्तों की भारी घुटन को, हवादार बना दिया
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मैं फूलों की दास्ताँ, काँटों की जुबानी लिखता हूँ
ख़िज़ाँ की जुबाँ से, गुलशन की कहानी लिखता हूँ
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गर ज़िंदा रहे
यारो, तो कल की सहर देखेंगे
रस्ते से हटे कांटे, तो अपनी भी डगर देखेंगे
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अब तक तो हवाएं थीं, तूफ़ान अभी बाक़ी है
यारो न निकलिए बाहर, शैतान अभी बाक़ी है
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कोई तो मेरी चाहतों को, ज़रूर समझेगा
कोई तो मेरी आदतों को, ज़रूर समझेगा
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ज़रा सी देर में, इसरार बदल जाते हैं
वक़्त के साथ, इक़रार बदल जाते हैं
दौलत है तो सब दिखते हैं अपने से,
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