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जाने कोंन सा रिश्ता, उनसे जुड़ने लगा है !
हर कदम उनकी तरफ, क्यों मुड़ने लगा है !
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अपना तो नाम मुफ़्त में,बदनाम हो गया !
बे-सबब ही हसीनों का, अहसान हो गया !
उनकी ज़फाओं से दिल टूट तो टूटा
यारो,
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अब किसी की घात का, अहसास नहीं होता !
ज़ख्मों में उठी टीस का, अहसास नहीं होता !
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हवा में अनजान सा डर, बसा क्यों है,
हर लम्हा ज़िन्दगी का, खफा क्यों है !
गुज़रती हैं स्याह रातें करवटें बदलते,
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यूं ही कभी तालियां, तो कभी गालियां मिलती रहेंगी
कहीं पर ग़म, तो कहीं पर शहनाइयां मिलती रहेंगी
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हमने ज़िंदगी को, उलझनों का शिकार बना दिया
लोगों ने अपने कुसूर का भी; गुनहगार बना दिया
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वो मुस्कराये क्या, कि हम आशिक़ी समझ बैठे,
हम तो मौत के सामान को, ज़िन्दगी समझ बैठे
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हमें परायों से नहीं, अपनों से डर लगता है
हमें तो सच से नहीं, सपनों से डर लगता है
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किसी से बहस करना, मेरी आदत नहीं है
बेकार उलझते फिरना, मेरी आदत नहीं है
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बेकार अपने वक़्त को, गंवाया मत करिये
हर जगह अपनी टांग, फंसाया मत करिये
कोई भी किसी से कम नहीं है आज कल,
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